यमन के हौसी नेता अब्दुल मलिक बदरुद्दीन अल-हौसी ने लेबनान में प्रतिरोधी समूहों को निहत्था करने की हालिया पहल को अमेरिका और इस्राईल के हित में उठाया गया "विश्वासघाती" कदम बताया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रस्ताव न सिर्फ़ पूरे क्षेत्र के लिए ख़तरनाक हैं, बल्कि यह सीधे तौर पर फ़िलस्तीन और अरब जगत के लक्ष्यों के ख़िलाफ़ हैं।
अपने गुरुवार के भाषण में हौसी नेता ने कहा कि "प्रतिरोध की ताक़त को कमज़ोर करना, ज़मीनी और ऐतिहासिक सच्चाइयों से आंखें मूंदना है। ये कदम कुछ सरकारों और प्रभावशाली वर्गों की ग़लत सोच की निशानी हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सशस्त्र प्रतिरोध ही वह मुख्य शक्ति है जिसने पिछले वर्षों में इस्राईल को क़ाबू से बाहर जाने से रोका है। अगर हथियार नहीं होते, तो शायद आज लेबनान एक बार फिर इस्राईली क़ब्ज़े में होता।
लेबनान की स्थिति चिंताजनक
अब्दुल मलिक अल-हौसी ने लेबनान की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि "इस्राईल पहले से ज़्यादा आक्रामक हो गया है, जबकि लेबनानी सेना की स्थिति कमज़ोर हो रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ अरब सरकारें भी इस्राईल की मांगों के साथ खड़ी हैं और ग़ज़ा में प्रतिरोध को निहत्था करने की वकालत कर रही हैं।
"दो-राज्य समाधान एक छलावा"
उन्होंने तथाकथित 'दो-राज्य समाधान' को एक "दावा मात्र" बताया, जिसका मक़सद है फ़िलस्तीनियों के किसी भी प्रभावशाली विरोध को रोकना। यह योजना हाल ही में न्यूयॉर्क में हुए सम्मेलन और लेबनानी कैबिनेट की बैठक में सामने आई थी।
"यहूदी धार्मिक ग्रंथों में अरबों को हीन माना गया है"
अपने भाषण में हौसी नेता ने यह भी कहा कि कुछ यहूदी धार्मिक ग्रंथ, विशेष रूप से 'तलमूद', अरबों और अन्य ग़ैर-यहूदियों को "कुत्तों और सूअरों से भी हीन" बताते हैं, और यही सोच वर्तमान ज़ायोनिस्ट अपराधों की बुनियाद है।
"उम्मत को चाहिए कि अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाए"
अंत में उन्होंने अरब और इस्लामी देशों की सरकारों और जनता से अपील की कि वे पश्चिमी योजनाओं का आँख बंद कर के अनुसरण न करें, बल्कि फ़िलस्तीन और अन्य प्रतिरोध आंदोलनों की सैन्य क्षमताओं को मज़बूत करने की दिशा में कदम उठाएं।
अगर उम्मत ने पहले दिन से फ़िलस्तीनियों की सैन्य शक्ति को मज़बूत करने की दिशा में सोचा होता, तो आज हालात पूरी तरह अलग होते।
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